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दीपावली

डॉक्टर सुधा सिन्हा

जगमग जगमग दीपक जलता
घर आंगन है इससे सजता
मन अपने में दीप जलाकर
प्यार से घर को रौशन करता।

आपस का वैमनस्व हटाकर
मन को तो झंकृत करना है
भाईचारे की डोर से
बंदनवार हमको सजाना है।

दीप से दीप अगर है जलता
मन से मन क्यों नहीं मिलता
चारो तरफ उजाला रहता
अन्धकार कोने में छिपता।

बेटी से ही घर है रौशन
उसके बिना नहीं कोई गुलशन
घर को बनाती है वह उपवन
उसके नाम एक दीप प्रज्वलन।

लक्ष्मी की सवारी आती
करना चारो तरफ सफाई
तबतक लक्ष्मी नहीं आयेगी
जबतक न होगी मन की सफाई।

पूर्व विश्वविद्यालय आचार्य एवं अध्यक्ष,
दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय

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