झील की बेटी
यशपाल जैन
डल झील काश्मीर का बहुत बड़ा आकर्षण है। अपने काश्मीर-प्रवास में हमलोग अक्सर शिकारे में झील की सैर करने चले जाते थे। एकदिन शाम खाली थी। संयोग से हमारा परिचित शिकारेवाला गफ्फारा मिल गया। फिर क्या था, बैठे उसके शिकारे में और घूमने चल पड़े ! गफ्फारा बोला, ‘‘साब, मैं आज आपको तैरती खेती दिखाऊंगा।’’
इतना कहकर उसने कोई तान छेड़ दी और मौज से नाव को खेता हुआ काफी दूर ले गया। उसके बाद सैर कराता हुआ वहां पहुंचा, जहां पानी की सतह के ऊपर कई प्रकार की खेती हो रही थी। नाव को रोककर बोला, ‘‘यहां आप उतर पड़िये और देख लीजिये कि इंसान ने कैसा करिश्मा कर दिखाया है।’’
हम लोगों ने डरते-डरते नीचे पैर रखा कि कहीं धरती के साथ अंदर पानी में न चले जाएं, पर हमारा वह भय निराधार निकला। फिर तो बेधड़क इधर घूमे, उधर घूमे। नीचे काफी गहरा पानी था। ऊपर घास की मदद से मिट्टी जमा कर खेती की गई थी। घूम-घामकर फिर नाव में आ गये और अब कमल के फूलों और बड़े-बड़े पत्तों के बीच से नाव को निकालता हुआ गफ्फारा दूसरी ओर को चला।
इतने में देखते क्या हैं, एक पतली तीर जैसी नाव पर एक काश्मीरी किशोरी खड़ी हम लोगों की ओर देख रही है।
गफ्फारा ने कहा, ‘‘साब, जानते हैं, यह लड़की कौन है ?’’
हमारे इंकार करने पर बोला, ‘‘यह यहां के जमींदार की लड़की है। ये जो खेत आप देखते हैं, सब इसी की जायदाद है।’’
हमारी कुछ दिलचस्पी पैदा हुई। गफ्फारा ने शिकारे की रफ्तार धीमी कर दी। बोला, ‘‘साब, यह बहुत बड़े आदमी की लड़की है। शाम को यहां आती है और घर के लिए साग तरकारी वगैरा ले जाती है। अभी इसकी शादी नहीं हुई।’’
हमने कहा, ‘‘इसे यहां बुलाओ।’’
गफ्फारा बोला, ‘‘जनाब, इसका बड़ा ऊंचा दिमाग है। आप बुलाइये। आवेगी नहीं।’’
हमने कहा, ‘‘नहीं, हम नहीं बुलावेंगे। तुम बुलाओ।’’
गफ्फारा मुस्कराया। नाव को उसने रोक दिया और लड़की को आने का संकेत किया।’’
लड़की कुछ सहमी। लगा, वह नहीं आवेगी। तब गफ्फारा ने उससे काश्मीरी में कुछ कहा। उसके बाद वह अपनी पतली सी नाव को खेकर सपाटे से हमारे पास आ गई।
वह झील की बेटी थी। डल जितनी सुन्दर थी, बेटी उससे भी अधिक सुन्दर थी, बड़ी स्वस्थ और निर्भीक। शहजादी जैसी लगती थी।
वह हमारी भाषा नहीं जानती थी। हम उसकी भाषा नहीं जानते थे। हमने गफ्फारा की मार्फत उससे पूछा, उसके पिता कहां रहते हैं, उनके पास कितनी खेती है, कितनी उससे आमदनी हो जाती है, घर में कितने लोग हैं, झील में अकेले आते उसे डर तो नहीं लगता, आदि-आदि।
उसने मुस्कराहट के साथ सारी बातों के उत्तर दिये।
उसकी नाव में मक्की के भुट्टे और कमलगटे रक्खे थे। उनकी ओर संकेत करके हमने कहा, ‘‘क्या ये भुट्टे और कमलगट्टे हमें नहीं दोगी ?’’
उसने बहुत से भुट्टे और कमलगटे हमारी ओर बढ़ा दिये। हमने उसे रोका, कहा, ‘‘नहीं, हमने तो यूं ही कहा था, हमें नहीं चाहिए। तुमने अपने घर के लिए इन्हें इकट्ठा किया है। ले जाओ।’’
पर वह नहीं मानी। जबर्दस्ती काफी भुट्टे और कमलगटे हमारी नाव में पहुंचा दिये।
‘‘इनके पैसे कितने हुए ?’’ हमने पूछा।
‘‘पैसे ! कैसे पैसे ?’’ उसने गफ्फारा के द्वारा विस्मय से उत्तर दिया।
‘‘ये जो चीजें तुमने दी हैं, उनके ?’’ हमने पैसे लेने के लिए आग्रह करते हुए कहा।
उसकी मुस्कराहट गंभीरता में परिणत हो गई। माथे पर बल डालकर, मुंह बनाकर, उसने कहा, ‘‘आपने हमें समझ क्या रक्खा है ! आप हमारे खेत पर आये हैं। हमारे मेहमान हैं। आपके मन में पैसे देने की बात आई कैसे ?’’
इतना कहकर उसने डांड़ उठाया और हम कुछ कहें कि उससे पहले ही अपनी तीर-सी नाव को तेजी से चलाकर अपने रास्ते पर बढ़ गई।
तभी झील में एकसाथ लहरें उठीं, मानों अपनी बेटी पर गर्व करते हुए मां पुलकित हो रही हो।